संस्कृति हमारी अनोखी है, हमारे लिबास में ही संस्कृति की झलक है – रबारी समाज की पहचान
पश्चिमी राजस्थान, गुजरात और देश के कई हिस्सों में फैला रबारी समाज सिर्फ एक जनजाति नहीं, बल्कि संस्कृति, परंपरा और आत्मगौरव का जीवंत प्रतीक है। हमारी संस्कृति इतनी गहरी और विशेष है कि वह हमारे पहनावे, आचार-विचार, भाषा, बोली, रीति-रिवाज़ और जीवनशैली में पूरी तरह से रची-बसी है।
हमारा लिबास सिर्फ वस्त्र नहीं होता – यह हमारी पहचान, हमारी विरासत और हमारे इतिहास की कहानी है।

संस्कृति का आधार – पशुपालन, परिश्रम और परंपरा
हमारा समाज सदियों से घुमंतु और अर्ध-घुमंतु जीवनशैली अपनाता आया है। हमारे पूर्वजों ने रेगिस्तान की तपती धरती पर भी पशुपालन को साधन बनाकर जीवन को साध लिया।
हमारे त्योहार, लोकगीत, नृत्य, वेशभूषा और भाषा में पशुपालन और लोकपरंपराओं की सजीव उपस्थिति है।
हमने संस्कृति को सिर्फ सहेजा नहीं, उसे अपने रोज़मर्रा के जीवन में जिया है।
बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, हर कोई इस परंपरा को गर्व से आगे बढ़ा रहा है।
लिबास में बसी संस्कृति – पीढ़ियों से पीढ़ियों तक
जब कोई रबारी पुरुष पगड़ी बांधता है, या कोई रबारी महिला अपने पारंपरिक गहनों से सजती है, तो यह केवल सौंदर्य नहीं – एक पूरे इतिहास, संघर्ष और संस्कार का प्रतिबिंब होता है।
हर कढ़ाई, हर रंग, हर गहना – एक कहानी कहता है, एक संदेश देता है –
“हम कौन हैं, कहां से आए हैं और किन मूल्यों पर खड़े हैं।”
निष्कर्ष – हमारी संस्कृति, हमारी शान
रबारी समाज की संस्कृति वास्तव में अनोखी और प्रेरणादायक है। यह संस्कृति कभी किताबों में नहीं पढ़ाई जाती, यह तो जीकर महसूस की जाती है।
हमारा लिबास, हमारी बोली, हमारे रीति-रिवाज़ – ये सभी मिलकर एक ऐसी परंपरा रचते हैं जो अखंड, अपराजेय और अत्यंत गरिमामयी है।
आइए, गर्व से कहें – हमारी संस्कृति हमारी पहचान है, और हमारे लिबास में ही उसकी सबसे खूबसूरत झलक है।