योगिराज मस्तनाथ उच्चकोटि के नाथ योगी थे, जिन्हें नाथ सिद्ध कहा जाता है। वे मध्यकाल के महान तपस्वी और योगपुरुष माने जाते हैं। अपने पंचभौतिक शरीर में महाराज पूरे सौ वर्षों तक विद्यमान रहे।
उनके समय में दिल्ली की राजसत्ता औरंगजेब की धार्मिक कट्टरता, सूबेदारों की स्वाधीनता, विदेशी आक्रमणों की विनाशलीला तथा यूरोपीय कंपनियों के पारंपरिक राजनीतिक सत्ता हतियाने के षड्यंत्र के परिणामस्वरूप कमजोर होती जा रही थी। नादिरशाह और अहमदशाह दुर्रानी के आक्रमण से देश का एक विशाल भाग, विशेष रूप से पश्चिमोत्तर प्रांत, पंजाब, हरियाणा आदि प्रदेश जर्जर हो रहे थे।
औरंगजेब की 1707 ई. में मृत्यु हुई, ठीक उसी संवत में मस्तनाथ जी महाराज ने धर्म के संरक्षण के लिए अभिनव गोरक्षनाथ रूप में जन्म लेकर अपने दिव्य कर्म का संपादन किया। राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और उत्तरप्रदेश की भूमि उनके दिव्य जन्म कर्म से विशेष रूप से गौरवान्वित हो उठी।महाराज ने नाथयोग के प्रचार-प्रसार और गोरक्षनाथ जी के योग सिद्धांतों के प्रतिपादन में महान भूमिका निभाई। उन्होंने शिवाजी, समर्थ रामदास तथा गुरु गोविंद सिंह की हिंदुत्व भावना से प्रभावित असंख्य लोगों को अपने दिव्य व्यक्तित्व से जागृत किया।