आज आपको रूबरू करवाते हैं ऐसी महिला से जिसकी कहानी उन तमाम महिलाओं के लिए प्रेरणादायक है जो अपने जीवन में कुछ नया करना चाहती हैं, अपनी खुद की पहचान बनाना चाहती हैं। आपने नाम तो सुना ही होगा पाबी बेन रबारी का जो एक साहसी, निडर, आत्मनिर्भर और हिम्मती महिला थी जो अपने संघर्षपूर्ण जीवन में समाज को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है। पाबी बेन रबारी ने यह साबित करके दिखाया है कि उपलब्धि और काबिलियतें कभी मोहताज नहीं होती बल्कि हिम्मत और मेहनत लोगों के सिर चढ़कर बोलती है। पाबी बेन रबारी ने अपनी हुनर से न केवल सिमित रही बल्कि उन महिलाओं को भी रोज़गार दिया जो घर पर बैठे केवल किस्मत को रो रही थी।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई इस रबारी महिला ने
पाबी बेन रबारी ने संघर्ष से लिखी सफलता की कहानी
गुजरात के कच्छ जिले के गांव भदरोईं के रहने वाली पाबी बेन लक्ष्मण रबारी की धर्मपत्नी है। पाबी बेन रबारी का जीवन संघर्षमय मुश्किलों से भरा गुजरता, जब वह केवल तीन वर्ष की थी तब पिताजी इस दुनिया को अलविदा कह गए थे। तब इनकी छोटी बहिन तीन वर्ष की थी और माँ गर्भवती थी। पाबी बेन ने माँ के संघर्षपूर्ण जीवन को अपनी आँखों से देखा है, वह माँ दूसरों के घरों पर काम करती थी। पाबी बेन रबारी अपनी बहनों में सबसे बड़ी थी। घर के आर्थिक हालात के कारण पाबी बेन सिर्फ कक्षा चार तक ही पढ़ पायी। मात्र 10 वर्ष की उम्र में ही माँ को काम में हाथ बंटाने लग गयी। वह लोगों के घरों में पानी भरने का काम करती थी जिसकी एवज में उसे एक रुपया मेहनताना मिलता था।

कढ़ाई: रबारी समुदाय की महिलाओं की पारंपरिक कला है
पाबी बेन देबेरिया रबारी समुदाय आती हैं जो पारंपरिक कढ़ाई में निपुण होते हैं, देबेरिया रबारी समुदाय गुजरात के कच्छ में निवास करते हैं। रबारी समुदाय में एक ऐसा रीति रिवाज होता है कि लड़कियां कपड़ों पर कढ़ाई करके अपना दहेज खुद तैयार करती है। इसी प्रथा के चलते वहां खास तरह की पारंपरिक कढ़ाई बुनाई की जाती है। पाबी बेन ने बचपन में ही अपनी मां से इस कला को सीखना था। इस तरह की बुनाई में काफी हार्डिक काम होता उन दिनों कपड़े तैयार करके उसे महीने या तीन महीने का समय लग जाता। पाबी बेन तक़रीबन एक चट पर बैठ कर घंटों तक रहना पड़ता था। इस समस्या को खत्म करने के लिए इस समुदाय के बुजुर्ग लोगों ने यह तय कर किया कि कढ़ाई का उपयोग अपने उपयोग के लिए नहीं करेंगे। लेकिन पाबी बेन नहीं चाहती थी कि यह पारंपरिक कला खत्म हो जाये, वो उसे निरंतर जारी रखा।
हरी-जर्री कढ़ाई के कारण बनाई अंतरराष्ट्रीय पहचान
1998 में पाबी बेन ने रबारी महिला समुदाय ज्वाइन किया जिसे एक एनजीओ फंड करता था। वह चाहती थीं कि यह कला भी खत्म न हो और समुदाय का नाम भी भाग न हो। इसलिए उन्होंने हरी जर्री की खोज की जो टेप्स और रिबन की तरह रेडीमेड कपड़ों पर किया जाने वाला एक मशीन एप्लिकेशन होता है। छह-सात साल तक यहाँ काम करने के बाद उन्होंने कुशन कवर, पाउच और कपड़ों पर डिजाइन बनाना शुरू किया। जिसके लिए उन्हें महीने में 300 रुपये मिलते थे।
पाबी बेन रबारी ने अपने पारंपरिक ज्ञान के कारण हरी-जर्री कढ़ाई में महारत हासिल कर ली। उन्होंने पहले तो अपनी शादी में खुद बैग बनाया, और कुछ समय बाद जब विदेशी पर्यटक उनके उस बैग की बेहद प्रशंसा की तो पाबी बेन ने इसे “पाबी बैग” नाम से लॉन्च किया। इसके बाद से यह बैग “पाबिबेन डॉट कॉम” के नाम से प्रसिद्ध कर दिया। पाबी बेन रबारी का बैग न सिर्फ देश में बल्कि विदेशों में भी काफी पसंद किया गया है। इसकी मांग जर्मनी, लंदन, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका जैसे देशों में है। उनके बैग को कई फिल्मों में भी विशेष उपयोग के लिए लिया गया है। फिल्म ‘लक बाई चांस’ में अभिनेत्री दीया मिर्जा और फिलमिश्तान में अभिनेत्री सीमा बिस्वास और कई महिलाओं को पाबी बेन का बैग इस्तेमाल करते हुए दिखाया गया है।

उनकी इस उपलब्धि के लिए उन्हें 2016 में पाबी बेन रबारी को "जानकी देवी बजाज" पुरस्कार से सम्मानित किया गया। पाबी बेन रबारी अब पाबी बेन डॉट कॉम के नाम से खुद ब्रांड चला रही हैं। उनकी एप्लिकेशन कढ़ाई वाली प्रोडक्ट्स की आज देश-विदेश के बाजारों में अच्छी अंतरराष्ट्रीय स्तर से उठाव है। भारत के अलग-अलग शहरों में भी उनके उत्पाद की अच्छी मांग बनी हुई है। आज पाबी बेन के पास 60 से अधिक महिलाएं काम कर रही हैं।
चौथी पास पाबी बेन रबारी आज 20 लाख टर्नओवर कंपनी की मालकिन है
शादी के बाद उनके पति ने भी पाबी बेन के कार्य में भरपूर साथ दिया और उनके कला को आगे बढ़ाने में पूर्ण रूप से सहयोग किया। कुछ वर्षों बाद उन्होंने अपनी कला को और निखारते हुए प्रदर्शनी में भी भाग लेना शुरू कर दिया। चौथी पढ़ी पाबी बेन ठठाई गाँव की महिलाओं के साथ मिल कर अपने काम को बढ़ाने का मन बनाया और पाबी बेन डॉट कॉम का निर्माण किया। उनके टीम को अहमदाबाद से करीब 70 हजार रुपये का पहला ऑर्डर मिला, जिसे पूरे टीम ने मेहनत से समय पर पूरा कर दिखाया। हर दिन नए डिजाइन्स सीखने के प्रयास में लगी रहने वाली पाबी बेन आज 25 प्रकार की एम्ब्रॉयडरी डिजाइनिंग पर कार्य कर रही हैं। आज उनके कार्यों के कारण उनकी कंपनी का टर्नओवर 20 लाख का है। गुजरात सरकार ने भी उनके काम को सराहा करते हुए बधाई दी और उनका मनोबल बढ़ाया।