गोगाजी चौहान पाबूजी के मित्र थे। एक दिन गोगाजी चौहान को एक बाग में एक खूबसूरत लड़की नजर आई। पाबूजी से पूछा यह कौन है तो उन्होंने कहा कि मेरे भाई बुडोजी की बेटी केलनबाई है। गोगाजी ने पाबू जी से केलनबाई से शादी का प्रस्ताव रखा। पाबूजी ने कहा मैं तो उसका मामा हूं मेरा कहना नहीं सुना जाएगा इस तरीके, फिर मैं बडेजलदार करूंगा। गोगाजी चौहान जब चक्कर काट के बुडोजी घर बैठा। पाबूजी को केलनबाई पसंद थी इसलिए बडेजलदार की शुरू की गई। गोगाजी ने आकर केलनबाई से कहा। सौलेहरी हिली हुई उसकी आंख के पास गई। उसने पाबूजी से कह सुनाया कि तुम्हारे भाई ने उन केलन, केलन को काट खाया। सौलेहरी हिली हुई उसकी आंख के पास गई। उसने पाबूजी से कह सुनाया कि तुम्हारे भाई ने उन केलन को काट खाया। पाबूजी ने गोगाजी से कहा कि मेरी बात सुनो, केलनबाई से शादी करूंगा लेकिन शादी में मैं राती-धोळी (रातळ भूरी) ऊंटनी दूंगा, तब केलन शादी पक्की मानी जाएगी। मगर दूसरी शादी गोगाजी चौहान रुकवा दी। उसी ऊंटनी को गोगाजी ने अपनी शादी में नाम दोहड़ दूध का ऊंटनी डाला, जब केलन उठ खड़ी हुई। फिर उसकी शादी की बात को ही गई। जब रातळ ऊंटनी से शादी करने को कहा गया तो वो ऊंटनी कहीं नहीं मिली। गोगाजी चौहान केलनबाई को ब्याह कर अपने घर ले गए।
जब उस नस्ल की ऊंटनियों की तलाश की गई तो पता चला कि यह नस्ल तो मारवाड़ में कभी नहीं रही। जब उस नस्ल की ऊंटनियों का नाम भी नहीं जानते थे। उस समय केलनबाई के विवाह हेतु राती-धोळी ऊंटनियों की नस्ल लाने हेतु पाबूजी ने पांच वीरों को इस कार्य में लगाया। पहला वीर देवासी जाति के जसवंत-भवणी नांवर वीर हरमल रायका को भेजा। जिनके साथ में देवासी जाति के अन्य वीरों को भी शामिल किया गया। हरमल रायका के साथ बींदावातां आला। ऊंट-घोड़े सूरा सरदार हरमल रायका, सरदार ऊमा जी, लिम्बा दो ही सवारों की गिनत न हुई। वह हरमल रायका ने प्रस्ताव को स्वीकार किया। हरमल देवासी बग्गा से चलकर सिंध (पाकिस्तान) में जा पहुंचा तथा वह ऊंटनियों की नस्ल का पता लगाकर कोडूमपुर दरबार पहुंचा। गोगाजी चौहान की सवारी जोधपुर के पास से कोडूमपुर (सिंध) जाती थी। कोडूमपुर को सिंध के मुसलमान के पास भी ऊंट दवाई हेतु उस सवार होकर जाते थे। वहां दो सवार और हरमल रायका वहां सेना के साथ गए (सिंध में राठकां नाम एक इलाका है)। ऊंट की सांडियों नस्ल में बहुत सुंदर नस्ल थी पर पवाई दूर से, पुखराज नस्ल की ऊंटनियों की नस्ल थी। हरमल रायका ने उस ऊंटनी की नस्ल को पहले चुराया और कोडूमपुर पहुंचा। अभी उनकी नस्ल मारवाड़ में फैली है। पाबूजी ने कहा – "यह ऊंटनी सांडियों के पास जाए और ऊंटनी के कुछ ऊंट दो चेरी-पिठाणी बांधकर भेज दो।" सांडियों ने ऊंट भेज दी और केलन को कहा कि – "आधी ऊंट बछड़ों में और आधी मारवाड़ के ऊंटों में छोड़ूंगा।" उस दिन से ऊंटों की ऊंटनी सांडियों की औलाद मारवाड़ में फैली है।