June 25, 2025
Bhinmal - Jalore (Raj)

सिद्ध योगी राज बाबा मस्तनाथ जी का संक्षिप्त जीवन परिचय

योगिराज मस्तनाथ उच्चकोटि के नाथ योगी थे, जिन्हें नाथ सिद्ध कहा जाता है। वे मध्यकाल के महान तपस्वी और योगपुरुष माने जाते हैं। अपने पंचभौतिक शरीर में महाराज पूरे सौ वर्षों तक विद्यमान रहे।
उनके समय में दिल्ली की राजसत्ता औरंगजेब की धार्मिक कट्टरता, सूबेदारों की स्वाधीनता, विदेशी आक्रमणों की विनाशलीला तथा यूरोपीय कंपनियों के पारंपरिक राजनीतिक सत्ता हतियाने के षड्यंत्र के परिणामस्वरूप कमजोर होती जा रही थी। नादिरशाह और अहमदशाह दुर्रानी के आक्रमण से देश का एक विशाल भाग, विशेष रूप से पश्चिमोत्तर प्रांत, पंजाब, हरियाणा आदि प्रदेश जर्जर हो रहे थे।

औरंगजेब की 1707 ई. में मृत्यु हुई, ठीक उसी संवत में मस्तनाथ जी महाराज ने धर्म के संरक्षण के लिए अभिनव गोरक्षनाथ रूप में जन्म लेकर अपने दिव्य कर्म का संपादन किया। राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और उत्तरप्रदेश की भूमि उनके दिव्य जन्म कर्म से विशेष रूप से गौरवान्वित हो उठी।महाराज ने नाथयोग के प्रचार-प्रसार और गोरक्षनाथ जी के योग सिद्धांतों के प्रतिपादन में महान भूमिका निभाई। उन्होंने शिवाजी, समर्थ रामदास तथा गुरु गोविंद सिंह की हिंदुत्व भावना से प्रभावित असंख्य लोगों को अपने दिव्य व्यक्तित्व से जागृत किया।

हरियाणा के रोहतक क्षेत्र के संग्राम गाँव में एक धनी रेबारी परिवार में सिद्ध बाबा मस्तनाथ जी अवतरित हुए। इस परिवार के सबला रेबारी नामक व्यक्ति निस्संतान थे। एक दिन यमुना नदी तट पर अमृतकाय शिवगोरक्ष महायोगी शिवगोरक्षनाथ जी ने उन्हें दर्शन दिए और पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। 1764 वि. में शिवपूजन के अवसर पर एक वन में वट वृक्ष के नीचे सबला और उसकी स्त्री को एक वर्ष के दिव्य बालक के रूप में मस्तनाथ की प्राप्ति हुई।
बचपन से ही मस्तनाथ जी की लीलाएं अद्भुत थीं। दस वर्ष की अवस्था में उन्हें गृहकार्य में अरुचि होने लगी और वे बालकों के साथ खेला करते थे। धीरे-धीरे उनकी लोकोत्तर लीलाएं आरंभ हुईं। वे गाय चराने जाते थे और साथ ही गाँव में अपने साथियों के साथ क्रीड़ा में मग्न हो जाते थे।
बारह वर्ष की अवस्था में मस्तनाथ के मन में वैराग्य का रंग चढ़ने लगा। वे नदी तट, वन और तालाब के रमणीय किनारों पर आत्मचिंतन में लग गए। वे इच्छाचारी, मिताहारी और ब्रह्मचारी के रूप में जीवन यापन में प्रवृत्त हुए।

एक दिन उनके निवास पर आइपंथ के प्रसिद्ध संत नरमाई का आगमन हुआ। मस्तनाथ ने उनसे श्री नाथ जी की सेवा में समर्पित होने की इच्छा जताई। नरमाई ने मस्तनाथ को 24 वर्ष की अवस्था में संवत 1788 वि. में योग मंत्र की दीक्षा देकर शिष्य रूप में स्वीकार किया।
मस्तनाथ जी ने हरियाणा प्रदेश के बोहर से सटे वन को अपना तपस्थल चुना। उन्होंने पंचाग्नि तप के लिए धूनी प्रज्वलित की। अनेक लोग उनके दर्शन से सफल मनोरथ होने लगे। उनकी तपस्या की अवधि में कई चमत्कार हुए, जैसे एक पंगु नारी सुंदर आकृति में बदल गई और उसकी पंगुता नष्ट हो गई।

मस्तनाथ जी ने बीकानेर, जोधपुर और अन्य स्थानों पर भी अपनी योग सिद्धियों का प्रदर्शन किया। उन्होंने राजा मानसिंह को जोधपुर का राजा बनने में सहायता की और उन्हें नाथ योग की दीक्षा दी।
बाबा मस्तनाथ जी के शिष्यों में घड़ीनाथ, धाता, रनपत और तोतानाथ आदि के नाम विशेष सम्मानित हैं। उन्होंने शिष्यों को उपदेश दिया कि आत्मतत्व का ज्ञान प्राप्त करना ही योगसाधना का फल है।
एक समय बाबा मस्तनाथ जी महाराज बीघड़ान गाँव में विराजमान थे। उन्होंने शिष्य मंडली से अपने महाप्रस्थान की बात बताई कि फाल्गुन शुक्ल पक्ष में यह यात्री स्वधाम चला जाएगा।

योगीराज श्रीगुरु महंत चांदनाथ जी योगी

महान कर्मयोगी योगीराज श्रीगुरु महंत चांदनाथ जी योगी जिनके चरण कमल का स्मरण सम्पूर्ण विश्व समुदाय को नष्ट कर देता है, ये सरस्वती का ध्यान लगाकर तथा सिद्ध योगी बाबा मस्तनाथ जी का स्मरण कर सिद्ध बाबा मस्तनाथ स्वरूप गोरखनाथ बाबा महंत चांद नाथ जी योगी की पावन लीला का संक्षिप्त वर्णन आप योगियों के समक्ष रख रहे हैं, ‘भगवान गणेश को सरस्वती माँ इस हेतु कह दे कि प्रयासों का स्मरण करो।’ पूज्य महंत चांदनाथ योगी जी - जिन पर शिक्षा मंत्रालय के केन्द्रीय मंत्री श्री राजनाथ सिंह तथा माता श्रीमती वेणु देवी के पंचम कुलीन परिवार में 21 फरवरी 1956 में एक दिव्य बालक का जन्म हुआ। सात भाई बहनों में सबसे बड़े बालक थे। शिक्षा में विशेष रूचि होने के कारण इन्हें पढ़ने तथा पढ़ाने में विशेष आनंद आता। इस बालक का नाम इनके पिताजी ने बालक राम रखा। वहीं बालक काल में होकर महंत चांद नाथ जी का नाम से जाना गया। जिनके योग में विशेष रूप से पूज्य विशिष्ट व्यक्तित्व द्वारा श्री बाबा मस्तनाथ जी की प्रेरणाओं को आगे बढ़ाया एवं मठ का संरक्षण किया। महंत चांद नाथ जी ने हिन्दु धर्मशास्त्रों के गूढ़ रहस्यों को आत्मसात किया। देश विदेश के अनेक यात्राएं की, अनेक देशों एवं राज्यों में मठ की शाखाएं की स्थापना की। श्रीगुरुजी ने विशेष शिक्षा के लिए विदेश भेजा। उसके अनुसार हेडली ह्युमनिथीज कॉलेज में उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैण्ड भेजा। 1994 से केन्द्रीय मंत्री के रूप में कार्य करते रहे उन्हें भारत के राष्ट्रपति श्री डॉ अब्दुल कलाम जी द्वारा मानद उपाधि प्रदान की गई।

मेरे गुरुदेव की शिक्षा और गुरुवाणी - गुरुदेव सिद्ध बाबा महंत चांद नाथ जी योगी।