किसी भी देश तथा समाज के उत्थान व पतन तथा वहाँ के ज्ञान-विज्ञान, कला-साहित्य, एवं संस्कृति का ज्ञान हमें इतिहास के द्वारा ही मिल सकता है।
हमें अपने पूर्वजों के क्रियाकलापों की जानकारी इतिहास के माध्यम से ही मिल पाती है। जिस जाति या समाज को अपने इतिहास का बोध नहीं होता, वह कभी भी प्रगति के मार्ग पर आगे नहीं बढ़ सकता।
कोई भी व्यक्ति या समाज इतिहास की जानकारी नहीं होने पर अपनी त्रुटियों को भी नहीं पहचान सकता।
इतिहास से ही हमें अपने पूर्वजों के अनुभवों का ज्ञान प्राप्त होता है। इतिहास एक पवित्र ग्रंथ है जो जाति को अंधकार से निकाल कर प्रकाश में ले आता है।
इतिहास हमें अतीत से पुलकित करने के साथ-साथ गर्व का श्रेष्ठ प्रमाणित करके हमें गौरव महसूस कराता है और उसके बिना इतिहास में बढ़कर कोई आधार नहीं हो सकता।
किसी जाति की प्रतिष्ठा रखने तथा विकास के पथ पर आगे बढ़ने के लिए इतिहास से अधिक प्रेरणा प्राप्त स्रोत कोई नहीं हो सकता।
इसलिए "देवासी समाज दर्शन" के माध्यम से हमारा यह महत्त्वपूर्ण उद्देश्य रहेगा कि हम समाज को उनके श्रेष्ठ इतिहास से जोड़ें और उन्हें बताएं कि उनका गौरवशाली अतीत कैसा रहा है।
इतिहास में किसी भी देश या जाति का उत्थान और पतन देखा जा सकता है। उस जाति को इतिहास में उज्जवल स्थान प्राप्त होता है जो यदि किसी देश या समाज के लिए संघर्ष करती है।
तो उसका इतिहास गौरवशाली बनता है। यदि कोई समाज अपने स्वाभिमान, अस्तित्व, संस्कृति की रक्षा के लिए बलिदान देता है, वह भटक सकता है परंतु मिटता नहीं। यही भारत में आज तमाम भी चार बडी़ जातियाँ रह गईं।
पिछड़ी हुई जातियों का इतिहास निरन्तर गौरवशाली रहा है। जीवित ने जिनको कबाड़ कर पिछड़ी हुई जातियों में मानकर रखा, स्वाभिमान एवं प्रतिष्ठा समाप्त कर दी।
किन्तु यदि हम गौर से देखें तो हमें ज्ञात होगा कि इतिहास में जिन जातियों ने वीरता, कला, साहित्य रचना का संचालन एवं उन लोगों में भी विशेष योगदान दिया जिनकी भूमिका समाज के उत्थान में उल्लेखनीय रही, वह समाज पिछड़ा कैसे हो सकता है?
हम इतिहास को देखते हुए समाजों को नामवाली तथा गैर-नामवाली जातियों के रूप में जानते हैं। जिन लोगों पर पवित्रता का ठप्पा लगाया गया और जिन पर कलंक का, वह जातियाँ ही आज उच्च और निम्न मानी जाती हैं।
"देवासी समाज दर्शन" के माध्यम से हम यह बताना चाहते हैं कि जाति और वर्ग भेद को समाप्त कर एक समरसतापूर्ण समाज स्थापना की ओर बढ़ना चाहिए।