June 25, 2025
Bhinmal - Jalore (Raj)
संस्कृति

रबारी/राईका/देवासी समुदाय की परंपरा (Rabari Traditions)

रबारी या रायकवा एक स्वदेशी देहाती समुदाय है, जो मुख्यतः राजस्थान, गुजरात और सिंध (वर्तमान पाकिस्तान) के बड़े हिस्सों में निवास करता है। यह समुदाय भगवान शिव को अपना आराध्य देव मानता है और मान्यता है कि वे स्वयं भगवान शिव के वंशज हैं। एक लोककथा के अनुसार, भगवान शिव ने ऊंटों की देखभाल के लिए रबारी समुदाय की उत्पत्ति की थी।

गोचर भूमि और पशुपालन की परंपरा:
रबारी या रायकवा परंपरागत रूप से पशुपालक होते हैं। उनकी जीविका का प्रमुख साधन ऊंट, गाय, भेड़ और बकरियों का पालन-पोषण रहा है। हिमालय की कैलाश पर्वतीय श्रंखला से होते हुए, ये समुदाय उत्तरप्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात की ओर प्रवास करते रहे हैं। माना जाता है कि इनकी यात्रा के दौरान ही ये क्षेत्रीय स्तर पर विभिन्न स्थानों में बसते गए।

राजा-महाराजाओं के साथ संबंध:
प्राचीन काल में रबारी समुदाय को अनेक राजाओं और शासकों का संरक्षण प्राप्त था। वे युद्धकाल में साहसी और भरोसेमंद साथी माने जाते थे। उन्होंने कई बार युद्धों में सैन्य सहायक की भूमिका निभाई और राजसी कार्यों में अपनी निष्ठा दिखाई। इसी कारण उन्हें “बहुत ईमानदार” और “विश्वसनीय सहयोगी” की संज्ञा दी जाती थी।

महिलाओं की भूमिका और पारंपरिक ज्ञान:
रबारी महिलाओं का समुदाय में विशिष्ट स्थान रहा है। उन्होंने कठिन परिस्थितियों में भी अपने परिवार और पशुधन की सुरक्षा की है। रबारी समुदाय की महिलाएं पारंपरिक शिल्प कला, कढ़ाई, वस्त्र अलंकरण, और अन्य लोककलाओं में भी निपुण रही हैं। उनकी वेशभूषा और गहने उनकी सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा हैं।

पारंपरिक विश्वास और आध्यात्मिकता:
रबारी समाज प्रकृति और पशुओं के प्रति अत्यंत संवेदनशील है। वे मानते हैं कि प्रत्येक पशु में एक प्रकार की दैवीय उपस्थिति होती है। वे गाय, ऊंट और अन्य पशुओं को केवल आजीविका का स्रोत नहीं बल्कि पूज्य जीव मानते हैं। पशुओं के व्यवहार, उम्र और शक्ति का अनुमान वे उनके स्वरूप और आचरण से लगाने में कुशल होते हैं।

सार्वजनिक जीवन: रबारी/राईका/देवासी समुदाय

रबारी या राईका समुदाय का जीवन मुख्यतः घुमंतू (Nomadic) होता है। वे अपने पशुधन—मुख्यतः भेड़, बकरी, ऊंट और गायों के साथ—राज्य दर राज्य प्रवास करते रहते हैं। यह प्रवास पशुओं के लिए चारा और पानी की खोज में होता है। अक्सर हजारों मील की यात्रा में उन्हें प्राकृतिक कठिनाइयों, सुरक्षा जोखिमों और सामाजिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

जीवन शैली और परंपरा:

रबारी समुदाय के पास केवल भौतिक संसाधन नहीं होते, बल्कि उनके पास स्थानीय जीवन का गहरा अनुभव और पीढ़ियों से संचित पारंपरिक ज्ञान होता है। वे विशेष रूप से जंगलों, पहाड़ियों और ऊँचे-नीचे क्षेत्रों से परिचित होते हैं। हर कठिन परिस्थिति का सामना वे अपने अनुभव और एकता से करते हैं। उनके प्रवासी जीवन में कहीं स्थायित्व नहीं होता, पर उनकी संस्कृति, लोकगीत, रीति-रिवाज और वेशभूषा उनके साथ चलती है।

उंटों का महत्व:

रबारी जीवन में ऊँटों का विशेष महत्व है। पुराने समय में रबारी ऊँट पर बैठकर चलने को गौरव का प्रतीक मानते थे और उनके लिए विशेष किस्म के ऊँट (जैसे “जमाली ऊँट”) तैयार किए जाते थे। ये ऊँट न केवल उनके यात्रा के साथी होते थे, बल्कि उनकी सामाजिक पहचान भी बन गए थे। आज भी ये ऊँट गणतंत्र दिवस की परेडों में दिखाई देते हैं।

सामाजिक संगठन और सुरक्षा:

रबारी समाज के पास अपनी सामूहिक व्यवस्था होती है, जैसे ‘टोला’ या झुंड, जो सामूहिक निर्णय लेने, विवाद सुलझाने और आपसी सहयोग के लिए काम करता है। वे एक दूसरे के साथ मिल-जुलकर संकटों का सामना करते हैं। गाँवों में वे ऊँटों और पशुओं की सुरक्षा के लिए विशेष चौकसी रखते हैं।

आस्था और धार्मिक विश्वास:

रबारी समुदाय भगवान शिव को अपना आराध्य देव मानता है और मान्यता है कि भगवान शिव ने ही उन्हें ऊँट चलाने का वरदान दिया था। वे अपने ऊँटों के गले में शिवलिंग जैसी आकृति के कंठी (मालाएं) पहनाते हैं।

दूध और डेयरी संस्कृति:

रबारी समाज में दूध और दूध से बने उत्पादों का विशेष महत्व होता है। उनकी गायें और भैंसें उत्कृष्ट किस्म की होती हैं। घी, मक्खन और छाछ उनके खान-पान का हिस्सा होते हैं। वे कहते हैं कि अगर ऊँटनी के दूध से मुंह में झाग (फेन) उठ जाए, तो वह ऊँटनी दूध देने के लिए उत्तम मानी जाती है।

वेशभूषा एवं आभूषण

रबारी/राईका पारंपरिक वस्त्र क्या पहनते हैं?

राईका समुदाय के पुरुष आमतौर पर मोटी धोती पहनते हैं, जो खादी या खद्दर की बनी होती है। शरीर पर अंगरखा और सिर पर लाल रंग की पगड़ी होती है। वृद्ध पुरुष प्रायः सफेद पगड़ी पहनते हैं। उनकी पगड़ी की लंबाई लगभग 6 से 7 मीटर तक होती है। खास अवसरों जैसे त्योहारों पर वे ज़री और मोटे गोटे-पट्टी से सजी हुई पगड़ी पहनते हैं।

उनके हाथों में चांदी की मोटी कड़े और कानों में सोने या चांदी की बालियाँ होती हैं।

रबारी धर्म (Rabari Religion)

राईका समुदाय के लोग अत्यंत धार्मिक और परंपरागत हिन्दू धर्म को मानने वाले होते हैं। वे अपनी उत्पत्ति भगवान शिव से मानते हैं, इसलिए शिव की पूजा प्रमुखता से करते हैं। इसके अलावा वे भगवान राम, हनुमान, कृष्ण और अन्य देवी-देवताओं की भी उपासना करते हैं।

उनके धार्मिक नियमों में शामिल हैं:

  • नियमित पूजा करना

  • धार्मिक ग्रंथों जैसे रामायण, गीता, भागवत पुराण का अध्ययन

  • कुलदेवियों की विशेष पूजा करना (जैसे चामुंडा माता, मिठाई माता, सोगमाता माता आदि)

  • नवरात्रि और अन्य पर्वों पर उपवास और विशेष धार्मिक कार्य करना

राईका समाज मांसाहार नहीं करता, और कुछ समुदायों में तो लहसुन और प्याज तक का सेवन वर्जित माना गया है। वे धार्मिक अनुष्ठानों में पवित्रता, साफ़-सफ़ाई और सादगी को बहुत महत्व देते हैं।

धार्मिक स्थल

राईका समाज के प्रमुख धार्मिक स्थलों में: गुजरात में: दुधरेज वडवाला धाम, श्री वालीनाथ भगवान तरभ, राजस्थान में: जैतेश्वर धाम सिणधरी बाड़मेर, हरियाणा में: सराय महलद और अन्य स्थान

श्री वालीनाथ भगवान तरभ
दुधरेज वडवाला धाम
जैतेश्वर धाम सिणधरी बाड़मेर

उत्सव और त्योहार मेला

राईका/रबारी समुदाय के प्रमुख पर्वों में होली, दीपावली, शिवरात्रि, नवरात्रि, जन्माष्टमी प्रमुख हैं। ये सभी उत्सव पूरे उल्लास, धूमधाम और परंपरा के साथ मनाए जाते हैं।

राजस्थान के प्रसिद्ध मेले

राजस्थान के सारणेश्वर महादेव मंदिर, सिरोही में भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष द्वितीया को हर वर्ष देवशुली एकादशी के आस-पास दो दिवसीय वार्षिक मेला आयोजित किया जाता है। इस मेले में:

  • राईका/रबारी और देवीसी समाज के लोग पारंपरिक परिधान पहनकर भाग लेते हैं।

  • स्त्रियाँ पारंपरिक वेशभूषा में विशेष रूप से सज-धज कर आती हैं।

  • धार्मिक अनुष्ठान, सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ और मेल-जोल का वातावरण देखने को मिलता है।

हरियाणा का बाबा मस्तनाथ मेला

हरियाणा में बाबा मस्तनाथ जी का मेला भी राईका/रबारी समुदाय के लिए विशेष महत्व रखता है। यह मेला:

  • शिवरात्रि का जेतेश्वर धाम मेला
  • शिवरात्रि का वडवाला धाम मेला
  • धजेरी अग्यारस श्री सारणेश्वर मेला, सिरोही
  • रोहतक के बाहर बोहर धाम में फाल्गुन माह की शुक्ल पक्ष सप्तमी से नवमी तक चलता है।

  • यह एक तीन दिवसीय भव्य आयोजन होता है, जिसमें हरियाणा, पंजाब और राजस्थान से भारी संख्या में राईका/रबारी समाज के लोग भाग लेते हैं।

  • नवमी के दिन बाबा मस्तनाथ को समर्पित पूजा और झांकियाँ निकाली जाती हैं।

  • रबारी समुदाय द्वारा मेला आयोजन का मुख्य दायित्व निभाया जाता है।

  • राम नवमी का मेला श्री जोगदासजी महाराज वेलांगरी